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72 फीसदी टैक्सपेयर्स ने अपनाया न्यू टैक्स रिजीम: सरकार के फैसले पर क्या होगा असर?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में न्यू टैक्स रिजीम को पेश किया था। इसका मकसद टैक्स सिस्टम की जटिलताओं को दूर करके उसे आसान बनाना था। इसमें आयकर से छूट की सीमा अधिक थी, लेकिन करदाता निवेश या किसी और मध्यम से अतिरिक्त छूट का लाभ नहीं ले सकते थे। इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने न्यू टैक्स रिजीम के टैक्स स्लैब में बदलाव करने के साथ स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट भी बढ़ा दी। इससे यह कर व्यवस्था और भी आकर्षक बन गई।

72 फीसदी ने नई कर व्यवस्था को चुना

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के आंकड़े बताते हैं कि असेसमेंट ईयर 2024-25 के लिए 7.28 करोड़ करदाताओं ने इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल किया है। इनमें से 5.27 करोड़ ने नई और 2.01 करोड़ ने पुरानी कर व्यवस्था को चुना। इसका मतलब है कि 72 फीसदी टैक्सपेयर्स ने नई और 28 फीसदी ने पुरानी कर व्यवस्था से अपना रिटर्न दाखिल किया। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि सरकार ने पिछले साल न्यू टैक्स रिजीम की डिफॉल्ट कर व्यवस्था बना दिया था। इसका मतलब कि अगर आप खुद से कोई टैक्स रिजीम नहीं चुनते, तो आपका रिटर्न ऑटोमैटिक नई कर व्यवस्था के तहत दाखिल होगा। लेकिन, टैक्सपेयर्स को पूरी छूट थी कि वे अपनी सहूलियत के हिसाब से टैक्स रिजीम चुन सकें।

न्यू टैक्स रिजीम को क्यों चुन रहे करदाता

नई कर व्यवस्था की सबसे बड़ी खासियत है इसका सरल होना। अगर आप पहली बार भी रिटर्न फाइल कर रहे हैं, तो आप न्यूज आर्टिकल या फिर यूट्यूब वीडियो के सहारे आसानी से रिटर्न फाइल कर सकते हैं। इसमें नियम-कायदों की अधिक झंझट नहीं है। इसने कई कटौतियों और छूटों से जूझने को बीते जमाने की बात बना दिया है। यह चीज टैक्सपेयर्स को काफी पसंद आ रही है। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) का कहना है कि नई कर व्यवस्था के स्लैब में टैक्स देनदारी की स्पष्ट और सीधी गणना होती है। इससे समय की काफी बचत होती है। साथ ही, त्रुटियों और गलतफहमी की गुंजाइश कम हो जाती है। कई स्रोतों से आय कमाने वाले करदाताओं को पहले रिटर्न दाखिल करना मुश्किल काम लगता था। नई कर व्यवस्था ने उनकी मुश्किल को आसान कर दिया है।

ओल्ड टैक्स रिजीम को खत्म करेगी सरकार?

सरकार नई कर व्यवस्था को जिस तरह से बढ़ावा दे रही है, उससे साफ जाहिर है कि उसका इरादा ओल्ड टैक्स रिजीम को खत्म करने पर है। एक्सपर्ट का भी मानना है कि दो टैक्स रिजीम होने से करदाताओं की उलझनें बढ़ रही हैं। सरकार का न्यू टैक्स रिजीम लाने का मकसद ही टैक्सपेयर्स की उलझन कम करना था। ऐसे में दो कर व्यवस्थाएं रहने का का कोई तुक नहीं बनता। एक ही टैक्स रिजीम रहने से टैक्सपेयर्स की कई उलझनें अपनेआप खत्म हो जाएंगी। वे आईटीआर भी ज्यादा आसानी से फाइल कर पाएंगे। एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार अभी कुछ और करदाताओं के नई कर व्यवस्था में स्विच करने का इंतजार कर सकती है। खासकर, अधिक इनकम वालों के। फिर वह पुरानी कर व्यवस्था को खत्म करके न्यू टैक्स रिजीम को आगे बढ़ाएगी।

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