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दुनियाभर में बढ़ा साइबर हमले का खतरा, पिछले साल हर 4 में से एक हुआ शिकार

नई दिल्ली : एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबली मैलवेयर, रैनसमवेयर और फिशिंग की गतिविधियों में इजाफा दर्ज किया गया है। अगर भारत की बात करें, तो पिछले साल 26 फीसदी यानी चार में से करीब एक लोग मैलवेयर का शिकार हुए हैं, जो कि वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा है। वैश्विक स्तर पर रैनसमवेयर हमले की दर 21 फीसदी है। जबकि भारत में करीब 30 फीसदी भारतीय संस्थान भी रैनसमवेयर हमले का शिकार हुए हैं। रैंसमवेयर हमलों का ज्यादा असर पेमेंट सिस्टम जैसे क्रिप्टोकरेंसी में देखा जा रहा है।

साइबर सिक्योरिटी पर खर्च के मामले में भारत पीछे

साल 2022 की थेल्स (Thales) डेटा थ्रेट रिपोर्ट में सबसे बड़ा चौकाने वाला खुलासा हुआ है कि उनसे डेटा के लिए फिरौती की मांग हुई। लेकिन इसके बावजूद ग्लोबली 41% लोगों ने सिक्योरिटी पर कोई खर्च नहीं किया। जबकि भारत में रैमसमवेयर सिक्योरिटी बेहद कम करीब 45 फीसदी ही खर्च किया जाता है। अगर वैश्विक स्तर पर होने वाले साइबर हमलों की बात करें, तो मैलवेयर की हिस्सेदारी करीब 56 फीसदी है। जबकि रैंसमवेयर की हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है। वही फ़िशिंग में हिस्सेदारी 40 फीसदी है।

क्लाउड बेस्ड स्टोरेज का इस्तेमाल है बेहद कम

2022 डेटा थ्रेट रिपोर्ट ने क्लाउड स्टोरेज डेटा का इस्तेमाल बढ़ा है। लेकिन संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के लिए एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल कम है। करीब 50 फीसदी लोगों का केवल 40 फीसदी संवेदनशील डेटा एन्क्रिप्टेड है। इस तरह 55 फीसदी ने मल्टी फैक्टर ऑथेंटिकेशन (एमएफए) को लागू करने की सूचना दी है।

बता दें कि भारत में साइबर हमलों से बचने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से साइबर हमलों के प्रति जागरुकता पहल शुरू की गई है। जिसका असर आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है।

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