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मप्र उपचुनाव विशेष : सट्टा बाजार में किस पार्टी की बन रही सरकार,यहाँ पढ़ें

 

— क्या संभव होगा प्यादों का वजीर बन जाना

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]

 

मध्यप्रदेश। फरवरी 20 का महीना…. जब कोरोना की कठोर पदचाप संचार तंत्र के माध्यम से देश और प्रदेश के नागरिकों को साफ सुनाई देने लगी थी। ऐसे विपरीत समय में हमारे प्रदेश के एक कर्णधार जहाँ अपनी सत्ता को बचाने की जुगत कर रहे थे तो दूसरे कर्णधार सत्ता के गलियारे में दाखिल होने के लिए बेक डोर एंट्री पा जाने की भरसक कोशिश अपने आलाकमान के इशारों पर कर रहे थे। .. आखिरकार सत्ता के शीर्ष से कमलनाथ की विदाई मार्च में तय हो जाती है और शिवराज का कमल लोकतंत्र को अंधियारे की तरफ धकियाते हुए उदयीमान हो जाता है। जब सिंधिया समर्थक 22 मंत्री और विधायक दल बदल कानून के सख्त केंटोनमेंट एरिया में से अपनी सुरक्षित गली तलाश लेते हैं। इसके बाद तीन और कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे हॉर्स ट्रेडिंग के दम पर कराये जाकर कांग्रेस के नेतृत्व की नाकामी पर मोहर लगाए जाने की सफल कोशिश होती है। दो भाजपा और एक कांग्रेस विधायकों के निधन के कारण तीन और सीटें रिक्त हो जाती हैं। यहाँ से सत्ता का कर्नाटकी खेल का इतिहास अपने आप को दोहराता हुआ नजर आता है।
यहाँ से असली मुद्दे की बात शुरू करें इससे पहले पीसीसी के उस ट्वीट पर गौर कर लें जिसमें कहा गया था कि आगामी आजादी के उत्सव की परेड की सलामी कमलनाथ बतोर मुख्यमंत्री लेंगे। ये भविष्यवाणी कोरोना काल के गाल में समा कर झूठी साबित हो जाती है। यहीं पर मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के उस वक्तव्य पर भी गौर कर लिया जाए जिसमें पार्टी के अंतरकलह को शांत करने के लिए वे कहते नजर आये थे कि यह शान और शौकत तभी तक है, जब तक सत्ता के शीर्ष पर पार्टी का कब्जा है।
सीएम चौहान का यह वक्तव्य इसलिए गौर करने वाला है कि वो बमुश्किल हासिल किये गए सत्ता के शीर्ष से बेदखल नहीं होना चाहते हैं। आखिर इस डर के पीछे क्या कारण है? साँवेर की सभा में खाली कुर्सियों और उपस्थित जन का अनुपात उनकी आशंकाओं को सही साबित करने के पर्याप्त प्रमाण भी बना।
अब चलते हैं चुनावी चौसर की बिछ चुकी बिसात की तरफ…. जहाँ कुल 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। 230 सीटों वाली विधानसभा में सरकार में बने रहने के लिए भाजपा को 107 विधायकों की मौजूदगी के अलावा नौ सीटों पर जीत और चाहिए। जोकि सरकार चला रही भाजपा के लिए मुश्किल काम नहीं लगता है। हाँ कांग्रेस को फिर से सरकार बनाने के लिए पूरी की पूरी 28 सीटें जीतने की लगभग असंभव सी चुनौती है।
पहली नजर में भाजपा अपनी सत्ता बचाये रखने के प्रयासों में सफल होती दिख रही है लेकिन यही राजनीति की टेढ़ी मेड़ी चाल का आधा सच है। पूरा सच जानने के लिए हम सट्टा बाजार के सर्वे की तरफ रुख करते हैं। जिसकी भविष्यवाणी पिछले चुनावों में लगभग सही साबित हुई हैं। इस बाजार का संचालन करने वालों का आधार क्या रहता है, ये तो वही बेहतर जाने लेकिन उनकी तीन से चार हफ्ते पहले आई रिपोर्ट के झरोखे से हम प्रदेश के राजनैतिक भविष्य में झाँकने की कोशिश करते हैं।
सट्टा बाजार का हाल फिलहाल यह मानना है कि भाजपा न्यूनतम 4 से अधिकतम 12 सीटें जीत सकती है। और कांग्रेस कम से कम 16 से 24 सीटें जीत सकती है। सच तो 10 नवम्बर को सामने आयेगा। गौर तलब है कि बसपा की मौजूदगी का उल्लेख भी सट्टा बाजार कर रहा है बल्कि कई सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष को भी स्वीकार कर रहा है लेकिन आज की परिस्थिति में बसपा को एक भी सीट जिता नहीं रहा है।
अब पहली स्थिति के हिसाब से अगर अधिकतम सीटों के जीत के समीकरण वाली कही जाए तो भाजपा के बारह सीट जीतते ही वह पूर्ण बहुमत में आ जायेगी। और कांग्रेस अपनी न्यूनतम 16 सीट जीत कर 104 विधायकों वाला प्रमुख विपक्षी दल ही रह जाएगा।
इसके उलट अगर कांग्रेस अपनी अधिकतम 24 सीटें जीतने में कामयाब होती है तो वर्तमान 88 विधायकों के साथ उसकी संख्या 112 हो जाती है तथा भाजपा अपनी कम से कम 4 सीट जीतकर 111 की संख्या पर रुक जाएगी। यहाँ से दो बसपा, एक सपा और चार
निर्दलीय विधायकों की पूछ परख बढ़ जाएगी। 116 के बहुमत का जादूई आंकडा पाने की जुगत में कांग्रेस और भाजपा दोनो होंगे। तब एक बार फिर से हॉर्स ट्रेडिंग का लोकतंत्र के लिए घातक खेल शुरू होगा। सारे प्यादे वजीर की पदवी पर सुशोभित हो जायेंगे। लेकिन हमारे कर्णधारों को सत्ता सुख पाने के लिए वह सब कुछ करना स्वीकार होगा जिसका कभी न कभी सभी ने विरोध किया होगा।

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