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कोरोना काल में आपकी सेहत को बेहतर रखेंगे मोटे अनाज

 

— मोटे अनाज में में अंडे के बराबर होतें है प्रोटीन

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]डाॅ. शालिनी चक्रवर्ती[/mkd_highlight]

 

 

कोरोना संक्रमण काल में आपकी सहेत बहेत्तर होना जरूरी है इसके लिए आपको अपना खान पान ठीक रखगा होना। सबसे पहले आपको ऐसे अनाजों को अपने भोजन में शामिल करना होगा जिसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन,कैल्शियम,लौह सहित अन्य पोषक तत्व हो। मोटे अनाज में सभी प्रकार के पोषक तत्व होते है। आगर अपने भोजन में मोटे अनाजों को शामिल करेंगे तो आपकी सहेत बहेत्तर होगी।

मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा एवं रागी में अन्य अनाज जैसे चावल एवं गेंहू की तुलना में ज्यादा पोषक तत्व पाये जाते हैं। ज्वार में अन्य अनाज की तुलना में 33-40 प्रतिशत अधिक कैल्शियम होता है एवं बाजरा में भी अन्य अनाज की तुलना में 85 प्रतिशत अधिक फाॅस्फोरस होता है। इसके अलावा मोटे अनाज में विटामिन जैसे – थियामिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और फोलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। मोटे अनाज में अंडे के बराबर प्रोटीन पाया जाता है। 100 ग्राम रागी में तीन ग्लास दूध से ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है। जितना लौह तत्व 60 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जियों में होते हैं उससे कहीं अधिक लौह तत्व बाजरे में पाये जाते हैं।

मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए बहुत कम पानी की खपत होती हैं इसलिए सिंचाई तथा बिजली जैसे संसाधनो के लिए सरकार पर निर्भरता भी कम रहती हैं। मोटे अनाजों का उत्पादन कम उर्वरकता वाली भूमि, कम गहरी भूमि तथा कम पानी वाली की उपलब्धता में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है इसलिए विशाल शुष्क क्षेत्रो के लिए ये एक वरदान है। मोटे अनाजों का उत्पादन कृत्रिम उर्वरकों के उपयोग पर निर्भर नही हैं इसलिए अधिकांश किसान को जैविक खाद ही उपयोग में लाना इससेे काफी हद तक सरकार पर उर्वरक सब्सिडी के बोझ को कम किया जा सकता हैं। मोटे अनाजों की खेती प्रणाली के इन सभी आसाधारण गुणों तथा क्षमताओं कें बावजूद मोटे अनाजों के उत्पादन क्षेत्र में पिछले कुछ दषको से निरंतर कमी आती जा रही हैं। जबकी पोषण की दृष्टि से मोटे अनाज प्रमुख अनाजों की तुलना में बेहतर हैं तब भी अभी तक इन फसलों का भोजन में उपयोग परंपरागत उपभोक्ताओं तक ही सीमित हैं तथा मुख्यता गरीब वर्ग के लोगो द्वारा ही खाया जाता हैं। मोटे अनाजों को खासतौर पर धार्मिक कार्यो जैसे व्रतों के दौरान सबसे अधिक याद कियाा जाता हैं। गेहूॅ भारतीय कृषि प्रणाली के लिए नया हैं परन्तु सरकार के संरक्षण तथा प्रचार के कारण गेंहूॅ के प्रसस्ंकृत खाद् पदार्थ आसानी से उपलब्ध होने के कारण यह लोगो में ज्यादा लोकप्रिय हो गया तथा मोटे अनाज उतने लोकप्रिय नही हो पाये। मोटे अनाजों की अलोकप्रियता के कई कारण रहे हैं –

1. मोटे अनाजों द्वारा होने वाले स्वास्थ्य लाभो के प्रति आम आदमी की उदासीनता और
अज्ञानता ।
2. मोटे अनाजों को खाने योग्य बनाने के लिए उपयुक्त प्राथमिक प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी का अभाव।
3. मोटे अनाजों से तुरन्त खाये जाने वाले मूल्य सवर्धित खाद्य सामग्री बनाने की प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी का अभाव।
4. मोटे अनाजों की बाहरी सतह कठोर होने के कारण इसको अन्य प्रमुख अनाजों की तरह पकाकर नरम नहीं किया जा सकता हैं।
5. मोटे अनाजों में एक विशेष प्रकार का स्वाद तथा गंध होती हैं।
6. इसके अतिरिक्त मोटे अनाजों में गेहूॅ की तरह लस (ग्लूटिन) नहीं पाया जाता हैं अतः इससे गेहूॅ की तरह पतली रोटी तैयार नही की जा सकती हैं।

उक्त कारणो से मोटे अनाजों का उपयोग समाज के गरीब वर्ग तक ही सीमित बना हुआ हैं। हाॅलाकि, मोटे अनाजो के प्रसंस्करण सम्बंधित कई अध्ययनों के प्रदर्षन से इसके उपयोग को बढ़ावा मिला हैं परन्तु मोटे अनाजों को शहरी तथा गैर परम्परागत आबादी के बीच अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए तथा मोटे अनाजों के विविध उपयोग को बढ़ावा देने के लिए निरन्तर प्रयास की आवश्यकता हैं।
मोटे अनाज, मूल्य सवर्धन तथा विविध उपयोग के लिए कई अवसर प्रदान करते हैं। उचित प्रसंस्करण के साथ यह संभव हैं कि मोटे अनाजों को विभिन्न तकनीकियों जैसे अंकुरण , दलाई (Milling) , माल्टिंग (Malting), फूलाना (Popping) आदि द्वारा खाने योग्य बनाया जा सकता हैं।
दलाई (Milling):- हाल के वषों में दलाई की कई नई तकनीकों को विकसित किया गया हैं जिससें लगने वाले समय तथा ऊर्जा दोनो को बचाया जा सकता हैं। आजकल घरेलू तथा बड़े पैमाने पर मोटा अनाज चक्की उपलब्ध हैं परंपरागत तकनीक से दराई करने पर भूसी तथा चोकर अलग अलग हो जाती हैं। दरे हुए मोटे अनाज से विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं जैसे फ्लैक्स, जल्दी पकने वाले अनाज , पूरक आहार माल्ट आधारित उत्पाद, बच्चो के लिए पोषक आहार इत्यादि।

माल्टिंग (Malting):- इस प्रक्रिया में अनाज को गीला करना तथा उनको अंकुरित करना सम्मिलित हैं। आमतौर पर अनाज को 16-24 घंटे के लिए भिगो देते हैं जिससे दाने पर्याप्त रूप से नमी अवशेषित कर लेते है और अंकुरित हो जाते हैं। माल्टेड ज्वार का प्रयोग कई देषो द्वारा किया जा रहा है। अंकुरित ज्वार से कई प्रकार के मादक पेय तैयार किये जाते हैं। माल्टिंग प्रक्रिया में अमीनों अम्ल की सरचंना में परिवर्तन आता है, स्टार्च शर्करा में परिवर्तित होता हैं। शरीर में वसा , विटामिन तथा खनिज की उपलब्धता में सुधार आता हैं। अंकुरित अनाज के आटे की, सामान्य आटे की तुलना में गर्म पानी के साथ मिलाने पर गाढ़ा करने की क्षमता काफी कम हो जाती हैं। अतः सामान्य आटे की तुलना में अंकुरित अनाज का आटा तीन गुना उपभोग किया जा सकता हैं। इससे उच्च कैलोरी घनत्व वालाा उत्पाद तैयार किया जा सकता हैं। छोटे बच्चे के आहार में यदि इन उत्पादों को स्थान दिया जाये तो उनको आहार की मात्रा बिना बढ़ाये ही उच्च कैलोरी आहार दिया जा सकता हैं। जो कि कुपोषण की समस्या को बहुत हद तक कम कर सकतें हैं। भारत में रागी माल्ट, बाजरा व ज्वार के माल्ट से ज्यादा स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं लोकप्रिय हैं।

फूलाना (Popping):- सामान्यतः रागी के दानो को फुलाकर प्रयुक्त किया जाता हैं, क्योंकि अन्य मोटे अनाजों की अपेक्षा रागी को फुलाने पर अधिक कुरकुरा व अच्छी सुगंध वाला उत्पाद तैयार होता हैं। फुले हुऐ मोटे अनाज रेषे तथा कार्बोज के अच्छे स्त्रोत हैं। मध्यम मोटी फली तथा कड़क एण्डोस्पर्म वाले मोटे अनाजों को फुलाना बेहतर साबित हुआ हैं। फुलाने की प्रक्रिया के दौरान लाइपोलिटिक एन्जाइम विकृत हो जाते हैं तथा इससें तैयार उत्पादो की उम्र बढ़ जाती हैं। मोटे अनाजों को फुलाने के पश्चात् नाश्ते के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता हैं। फूले हुऐ मोटे अनाजों को नमक और मसाले के साथ या लडड्, सत्तू तथा चिक्की के रूप में मिठाई की तरह सेवन किया जा सकता हैं। फूले हुऐ मोटे अनाजों के आटे को भुनी हुई दालों जैसे काले चने एवं गुड़ या चीनी के साथ मिश्रित कर बच्चो एवं धात्री महिलाओं के लिए एक पूरक आहार तैयार किया जा सकता हैं जिससे प्रोटीन, लौह तत्व के साथ सभी अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की प्राप्ति हो सकेगी। पोषण से भरपूर होने के साथ साथ मोटे अनाज से बनाये गए भोज्य पदार्थ बहुत ही कम मूल्य के भी होते हैं जो कि हर वर्ग के लोगों द्वारा आसानी से ग्रहण किये जा सकते हैं। मोटे अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों एवं फाइटोकेमिकल्स के भरपूर स्त्रोत हैं अतः इस तरह के उत्पाद चावल तथा गेहूॅ से बने इसी तरह के उत्पादों से अधिक गुणवत्ता रखतें हैं।

बेकिंग:- किसी भी प्रकार का आटा बेकिंग के लिए उपयुक्त होता हैं। ग्रामीण इलाको में तो पहले से ही मोटे आनाज की रोटी प्रचलित हैं। शहरी क्षेत्रो में पतली रोटी खायी जाती हैं अतः सामान्य आटे के साथ मोटे अनाज के आटे को मिलाकर रोटी या चपाती के रूप में प्रयुक्त किया जाता हैं। इसी मिश्रित आटे से बिस्किट, केक , कुकीज़ आदि भी बेक की जा सकती हैं।

एक्सट्रूज़न कुकिंग(Extrusion cooking)- यह बहुत ही लोकप्रिय प्रसंस्करण विधि हैं जिसका उपयोग चावल तथा मक्का के लिए किया जाता हैं। इस विधि से मोटे अनाजों के तुरन्त खाने योग्य भोज्य पदार्थ तैयार किये जा रहे हैं। इस विधि में , अनाजों को बहुत उच्च तापमान पर कम समय के लिए पकाया जाता हैं। इस प्रक्रिया में स्टार्च जिलेटिनाइज्ड (Gelatinized)हो जाता है तथा प्रोटीन असंतृप्त हो जाती है जिससे उत्पाद की पाचकता बढ़ जाती हैं। इस प्रक्र्रिया में पोषण विरोधी कारक भी निष्क्रिय हो जाते हैं तथा सूक्ष्मजीवी काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं और उत्पाद का जीवन भी बढ़ जाता हैं। इस प्रक्रिया में उत्पाद को किसी भी पोषक तत्व से पूरित कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में छना हुआ आटा ही उपयोग में लाना बेहतर हैं नही तो चोकर या छिलके के कारण उत्पाद सही नही बनेगा।

अतः हम यह कह सकते हैं कि मोटे अनाजों का प्रसंस्करण तथा मूल्य सवर्धन कर के अपने दैनिक आहार में बड़ी सरलतापूर्वक सम्मिलित किया जा सकता हैं। मोटे अनाजों के पोषण गुणों से हम भलीेभाति परिचित हो चुके हैं। भोजन मूल्य के साथ साथ इन सभी फसलों का चारा मूल्य भी हैं। जानवरों द्वारा भी यह फसलें बहुत पसंद की जाती हैं। यह फसलें कम उर्वरक मिट्टी, अम्लीय मिट्टी तथा क्षारीय मिट्टी में भी उगायी जा सकती हैं। पानी की आवश्यकता भी बहुत कम होती हैं। कृत्रिम उर्वरक की आवश्यकता भी नही होती हैं। कीट मुक्त फसले हैं अतः कीटनाशकों के उपयोग की भी आवश्यकता नहीं होती हैं। इस प्रकार से मोटे अनाजों को उगाकर तथा उनका उपयोग कर हम पर्यावरण सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा तथा आर्थिक सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। किसानों के लिए जलवायु अनुरूप खेती के विकास के लिए यह एक उपयुक्त विकल्प हैं।

( ले​खिका फल अनुसंधान केन्द्र, ईटखेड़ी रा.वि.सि.कृ.वि.वि,ग्वालियर,म.प्र. में वैज्ञानिक है )

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