राष्ट्रीय

‘उमा भारती’ को ‘उमा श्री भारती’ कहने वाले गुरू विश्वेश तीर्थ महाराज पेजावर स्वामी का निधन

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री ‘उमा भारती’ को ‘उमा श्री भारती’ कहने वाले गुरू विश्वेश तीर्थ महाराज पेजावर स्वामी का निधन हो गया। उनके निधन पर उमा भारती सहित कई नेताओं और अध्यमिक गुरूओं ने दुख व्यक्त किया है। पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने उनके गुरू विश्वेश तीर्थ महाराज पेजावर स्वामी के निधन पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कुछ बातें साझा की है।

‘मेरे गुरू श्री विश्वेश तीर्थ महाराज पेजावर स्वामी आज अपने भौतिक देह को छोड़कर श्रीकृष्ण लोक को चले गए। उनकी आयु 90 वर्ष थी। उन्होंने 8 वर्ष की उम्र में सन्यास की दीक्षा ली थी। इस तरह से स्वामी जी 82 वर्ष तक सन्यासी जीवन जिये। स्वामी जी की महिमा के सामने सभी धर्म, सभी जातियाँ एवं सभी राजनीतिक दलों के लोग नतमस्तक रहें। 20 दिसंबर को स्वामी जी की अस्वस्थता का समाचार मिलते ही मैं उत्तराखंड हिमालय से कर्नाटक उड़ुपी की लिए निकल पड़ी एवं मैं पिछले 9 दिन से उड़ुपी में ही रही। दक्षिण भारत में समाज सुधारों में वह अगुआ रहें। उन्हें इंदिरा जी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी अत्यधिक आदर देते रहे हैं। उड़ुपी, कर्नाटक का श्रीकृष्ण मठ 800 वर्ष पहले श्री माधवाचार्य जी ने स्थापित किया था। यहाँ पर जो कृष्ण की प्रतिमा है, वह द्वापर युग की है। शालिग्राम शिला से बनी यह प्रतिमा द्वारका में कृष्ण ने स्वयं रुक्मणी जी को भेंट की थी, वही प्रतिमा 800 वर्ष पहले द्वारका से उड़ुपी में स्थापित की गई थी।

हर 12 वर्ष के बाद मठ के पीठादिपति को 2 वर्ष के लिए कृष्ण की स्वयं पूजा करने का अवसर मिलता है। इस अवसर को पर्याय कहते हैं। आज से 800 वर्ष पहले श्री माधवाचार्य जी को 5 पर्याय करने के अवसर मिले थे, इसके बाद, मेरे गुरू श्री विश्वेश तीर्थ महाराज जी को यह अवसर मिला। स्वामी जी से मेरी मुलाक़ात राजमाता विजया राजे सिंधिया जी ने 1986 में करवाई थी तथा मैंने स्वामी जी से 17 नवंबर 1992 को मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे, अमरकंटक में सन्यास की दीक्षा ली तथा उन्होंने मेरा नामकरण ‘उमा भारती’ की जगह ‘उमा श्री भारती’ किया। जब परम पूजनीय गुरू गोलवलकर जी ने विश्व हिंदू परिषद के स्थापना की घोषणा की तब उन्होंने स्वयं स्वामी जी से मुलाक़ात कर के विहिप से जुड़ने के लिए कहा। रामजन्मभूमि आंदोलन के स्वामी जी प्रमुख योद्धा संत रहे। उनकी इच्छा थी कि वो अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण देखें। राम मंदिर के निर्माण की पूरी पृष्ठभूमि बनाने में स्वामी जी की प्रमुख भूमिका रही तथा कृष्ण लोक में प्रयाण से पहले सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला उन्होंने सुन लिया। भव्य राम मंदिर का निर्माण वो हमारी आँखों में से देखेंगे। स्वामी जी- मेरे गुरू, मेरी माँ एवं मेरे पिता थे। वह मेरे ह्रदय में सदा जीवित रहेंगे एवं मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

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