कहानी : जादू है झप्पी…
( शैलेश तिवारी )
हाथ को हाथ नहीं सूझता हो..ऐसे घने कोहरे में..रगों में दौड़ते खून को जमा देने को आतुर ठंडी हवा.. बहुत सारे गर्म कपड़ों को पहनने के बाद भी… एक्टिवा चलाना.. किसी चुनौती से कम नहीं था..। विदा होते साल के आखिरी महीने में घर पर पी गई कॉफ़ी की गर्मी ही… इस सर्दी से मुकाबला कर रही थी..। आखिरकार मंजिल आ गई… एक्टिवा को स्टैंड पर टिका कर… वो कालेज के सभागार में पहुंची… ।
सुई पटक सन्नाटे में उसकी आवाज गूँज रही थी “आपके गुजिस्तां वक्त की पोटली में स्मृतियों का खजाना हो सकता है….. या भविष्य की संभावनाओं के सपने अंगड़ाई ले रहे होंगे… लेकिन जीना तो है उसी का… जिसने ये राज जाना कि… समय के वर्तमान लम्हों को जी भर के जी लिया जाए..। जिसने आज में जीना सीख लिया… बस जिंदगी उसी की है… वही मुकद्दर का वो सिकंदर बन जाएगा… जो खुश होकर जीना सीख गया..। हर हाल में चेहरे पर मुस्कुराहट हो तो… कई समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाता है…। खुश होकर काम करने से… उस काम में परफेक्शन नजर आता है… आपके शुभचिंतक इस काम को सराहेंगे….तो जलने वाले कुड़ जाएँगे.. आप किसी की परवाह मत कीजिये… मान कर चलिए कि… सर्व शक्तिमान विधाता ने आपको ही उस काम के लिए चुना है… जिसे आप खुश होकर कर रहे हैं….। इसी मंत्र से आप सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए.. उन्नति के शिखर को आसानी से छू सकते हैं…।
सर्द मौसम में अखिल का गर्मजोशी से भरा वक्तव्य जारी था.. और चांदनी का मन अखिल की हिदायतो के बावजूद यादों की गलियों में स्वच्छंद विचरण करने लगा…। इसी पीजी कालेज में अखिल से मुलाकात हुई थी… जब यह डिग्री कालेज हुआ करता था… ये वो वक्त था जब चाँदनी के बिना कालेज की कोई भी गतिविधि अधूरी होती थी… हंसमुख और मिलनसार चाँदनी के जीवन से…. उसी दौर में सर से पिता का साया उठा…. और उसकी शोखियाँ उदासी में बदल गई… सुख के साल पल में गुजर जाने और… दुख के पल सदियों का अहसास कराने लगे थे… सारे दोस्त मिलकर चाँदनी को वर्तमान में जीने की सलाह दे रहे थे लेकिन… उसका असल दर्द वही जान सकता था… जिसने अपने पिता को असमय खोया हो..। ऐसे में जिंदादिल जिंदगी जीने वाले अखिल ने भी अपने हिसाब से चाँदनी को खुश रखने के लिए दोस्तों की महफ़िल में मिमिक्री की, चुटकुले सुनाए.. लेकिन ये मरहम.. चांदनी की उदासी पूरी तरह दूर न कर पाए….। चाँदनी को अखिल आकर्षित करने लगा..। और वो दिन तो चांदनी को खूब याद आया… जब नीम के झूमते दरख़्त के नीचे…. क्लास के बाद मित्रों की मंडली ने महफ़िल सजाई… उसी दिन अखिल ने पहली बार उस समय आई एक फिल्म में… बताई जादू की झप्पी का जिक्र करते हुए बताया था कि… एक झप्पी आदमी को कैसे बदल देती है.. मकसूद चाचा और मुन्ना के बीच के दृश्य को कितने सजीव तरीके से उसने… प्रस्तुत किया था कि… सभी की आँखें नम हो गई थी..। उसके चित्रण से प्रभावित कई दोस्तों ने फिल्म भी देख डाली… और बढ़ चढ़ कर उसी किस्से को सुनाने लगे। मेरा मन ही नहीं हुआ उस समय उस फिल्म को देखने का…। कालेज छूटने के साल दो साल बाद… वो विदा होकर शशांक के घर आ गई…। फिर दो बच्चों और..उनके पिता की देखरेख में ऐसी उलझी कि..वक्त मुठ्ठी की रेत सा फिसलता गया….। होश तब आया था जब शशांक भी उसे बहुत कम समय के साथ के बाद टाटा कर गए…. अब बच्चों को पालने की जिम्मेदारी पूरी तरह उसकी हो गई…। अनुकंपा नौकरी लग जाने से ये आसान हो गया…। इसी दौर में यू ट्यूब पर देखी… मुन्ना भाई एमबीबीएस.. और वही दृश्य झप्पी वाला..उसकी हथेलियां ताली बजाने लगी..। इधर हाल में तालियों की गूँज सुनाई दी…।
अखिल का वक्तव्य खत्म हो गया था… कितने लंबे समय बाद वो अखिल से मिलने वाली थी….। अखबार में उसके वक्तव्य के आयोजन की सूचना पढकर सीधे कालेज आ गई थी… अखिल से मिलने की इच्छा ने मौसम की प्रतिकूलता को हरा दिया..। क्या अखिल उसे पहचान लेगा… शरीर के क्षेत्रफल से लेकर बहुत कुछ बदल चुका है मेरा…ये आँखों का चश्मा… और बालों की सिल्वर चमक…। सब कुछ तो बदला हुआ है…। वो न पहचाने तो न पहचाने मैं तो पहचानती हूँ…। तभी भीड़ से घिरा अखिल खडा हो गया आकर सामने मेरे..कुछ देर गौर से देखने के बाद… बोला चांदनी हो न… स्वीकृति में सिर हिलते ही..आगे बढ़ा और.. दे दी जादू की झप्पी….। वाकई जादू ही था उस झप्पी में….. जिसका मुझे अहसास तो हुआ .. लेकिन शब्द नहीं हैं .. बयां करने को.।