श्रीमंत की ठसक या कसक से टल गए मंत्रिमंडल के नाम
– पहली प्रशासनिक सर्जरी में बड़े जिलों के कलेक्टरों की बिदाई
(कीर्ति राणा)
श्रीमंत के कारण पिछले दिनों में मप्र कांग्रेस में जो परिस्थितियां बदली हैं उसके चलते अब मंत्रिमंडल गठन टला है तो उसकी मुख्य वजह सिंधिया सर्मथक विधायकों द्वारा भोपाल और दिल्ली में किए जा रहे प्रदर्शन और सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने पर ही कांग्रेस के पक्ष में मत देने जैसी धमकियां हैं। भले ही सिंधिया ने ‘मैं पद का भूखा नहीं’ जैसा बयान देकर अपरोक्ष रूप से कमलनाथ पर निशाना साधा है लेकिन सिंधिया समर्थक भी श्रीमंत की इस ठसक से खुश नहीं हैं। राजस्थान में भी ऐसा ही विवाद था लेकिन राहुल गांधी ने गेहलोत को सीएम और सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद सौंप कर हल निकाल दिया था। सिंधिया समर्थक चाहते हैं कि सिंधिया नहीं बनते डिप्टी सीएम अपने किसी विधायक के लिए इस पद पर समझौता करने के साथ ही महत्वपूर्ण विभागों के लिए अपने विधायकों के नाम आगे बढ़ा कर पहली सूची में ही अपना दबदबा दिखा सकते थे। अब जब कि कमलनाथ अकेले शपथ लेंगे तो एक बार फिर साबित हो जाएगा कि कांग्रेस आलाकमान कमलनाथ की हर इच्छा का आंख मूंद कर समर्थन कर रहा है।
प्रशासनिक सर्जरी में कुछ संभाग और इंदौर सहित बड़े जिलों के कलेक्टरों के नाम
मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता किसानों की कर्ज माफी तो है ही, प्रदेश के और खासकर कम अंतर से या जैसे तैसे जीते विधायकों का दबाव है कि उनके जिलों के कलेक्टर-एसपी को तत्काल बदला जाए।इस बदलाव के दबाव के पीछे मुख्य कारण अपने जिले के मतदाताओं को यह संदेश भी देना है कि हमने शिवराज की पसंद वाले कलेक्टरों को हटवा कर पहली फुर्सत में अपनी पसंद के कलेक्टर के आदेश करवा लिए।
वैसे भी प्रशासनिक सर्जरी व्यापक पैमाने पर होना है क्योंकि बीते पंद्रह वर्षों में कांग्रेस के कार्यकर्ता ही कलेक्टरों पर भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं। कलेक्टरों को ही आंख-कान समझ लेने की भूल का खामियाजा दिग्विजय सिंह की तरह तरह शिवराज सिंह को भी उठाना पड़ा है। जिले से प्रदेश भाजपा संगठन की बैठकों, कार्यकर्ता सम्मेलनों में जिलों के पदाधिकारी से लेकर भाजपा के कार्यकर्ता खुले तौर पर यह आरोप लगाते रहे थे कि जिलों में कलेक्टर उनकी बात ही नहीं सुनते । इंदौर सहित भोपाल, जबलपुर आदि के भाजपा विधायकों ने भी संगठन महामंत्री के सम्मुख अपनी पीड़ा सुनाई थी कि कलेक्टर उनके बताए जनहित के काम भी नहीं करते।
यही कारण है कि पहली सर्जरी में भाजपा के चहेते कम से कम पंद्रह कलेक्टरों को वल्लभ भवन में पदस्थ करना तय माना जा रहा है। ये वे आयएएस हैं जिन पर चुनाव के दौरान भाजपा के पक्ष में काम करने के आरोप कांग्रेस लगाती रही है।मतगणना के एक दिन पहले कमलनाथ ने यह बयान देकर (ऐसे चिन्हित) कलेक्टरों सहित प्रशासनिक अधिकारियों को आगाह भी कर दिया था कि अधिकारी याद रखें 11 के बाद 12 दिसंबर भी आने वाला है।पीसीसी स्तर पर इन अफसरों की सूची पहले ही तैयार कर ली गई थी।
कांग्रेस के निशाने पर वे सारे कलेक्टर भी हैं जिन जिलों में चुनार आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर राज्य निर्वाचन कार्यालय से शिकायत की गई थी और निर्वाचन कार्यालय द्वारा उन संभागों के कमिश्नरों और कलेक्टरों से जांच प्रतिवेदन भी मांगे गए थे लेकिन इन आयएएस ने नहीं भेजे थे। इसके साथ ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने या भाजपा को खुश करने के लिए एक तरफा कार्रवाई करने, राम वनपथ गमन यात्रा को रोकने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज करने वाले कलेक्टरों के नाम, उनके भाजपा को लाभ पहुंचाने वाले काम और टीआई से लेकर एसपी तक द्वारा भाजपा विरोधी आंदोलनों में जबरिया कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों की सूची चंद्रप्रभाष शेखर और पूर्व पुलिस अधिकारी प्रवीण कक्कड़ ने जिलों से मिले फीडबेक के आधार पर तैयार की है।जिन कलेक्टरों की पहली सूची में विदाई तय मानी जा रही है उनमें इंदौर कलेक्टर सहित रीवा, सीहोर, सागर, भोपाल के कलेक्टर निशाने पर हैं। इनकी सबसे ज्यादा शिकायतें भाजपा के पक्ष में काम करने के संबंध में कांग्रेस ने चुनाव आयोग और सीईओ कार्यालय में भी की गई थी।
इन संस्थानों के संचालक भी निशाने पर
सरकार बदलने के बाद परंपरा और नैतिकता के तहत इंदौर और उज्जैन के विकास प्राधिकरणों के अध्यक्षों द्वारा इस्तीफा न देने पर भी कांग्रेस नेताओं की नजर तिरछी हो चुकी है। तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी परिषद मेपकास्ट के डीजी नवीन चंद्रा और केंद्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान ग्वालियर के डायरेक्टर पर भी गाज गिर सकती है। कांग्रेस ने मेपकास्ट के डीजी पर भाजपा के पक्ष में काम करने साधू-संतों को भोजन और यहां ठहरने की व्यवस्था करने तथा ग्वालियर के शारीरिक शिक्षा संस्थान डायरेक्टर व प्राध्यापकों पर भाजपा की मैराथन दौड़ में शामिल होने का आरोप लगाया था। आयोग ने इस मामले दो प्राध्यपकों पर कार्रवाई के लिए भी लिखा था।
जनअभियान परिषद पुर्नगठन के साथ ही की गई भर्ती पर भी नजर
शिवराज सिंह जन अभियान परिषद के अध्यक्ष थे, उनके भूतपूर्व होते ही इसकी गवर्निंग बॉडी भी भंग हो गई है।इस परिषद को लेकर भी कांग्रेस खेमा आरोप लगाता रहा है कि परिषद की आड़ में आरएसएस की गतिविधियों को बढ़ावे के साथ ही इसी विचारधारा के हजारों लोगों की वैतनिक नियुक्ति की गई और पिछले तीन चुनाव के दौरान
परिषद से जुड़े कार्यकर्ता भाजपा के पक्ष में काम करते रहे हैं।चलते चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव आयोग की फुलबेंच के समक्ष परिषद के अधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया था। सागर और होशंगाबाद संभाग में कई कार्यकर्ताओं को भाजपा के पक्ष में काम करने और चुनाव सामग्री ले जाते हुए पकड़ा भी गया था। सरकार ने आचार संहिता से पहले ही इनके सैकड़ों कार्यकर्ताओं को विज्ञापन जारी कर नियमित भी किया था।इसी तरह सहकारिता विभाग पर भी नजर चुनाव से ठीक पहले सहकारिता विभाग ने अपने एक्ट में संशोधन कर किया था। इसके बाद साढ़े चार हजार समितियों में अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी गई थी। कांग्रेस की शिकायत के बाद सहकारिता विभाग ने अध्यक्षों को हटाते हुए उन पदों पर प्रशासक नियुक्ति कर दिया था, लेकिन जब आयोग ने इस मामले मेंसहकारिता विभाग को जवाब मांगा तो सहकारिता विभाग ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के विश्वस्त अधिकारियों द्वारा विधानसभा चुनाव की मतगणना के अंतिम दौर के दौरान भोपाल से दिए जा रहे निर्देशों के अनुसार 3 कमिश्नर और पंद्रह से ज्यादा कलेक्टर ने जिस प्रकार कथित तौर पर बीजेपी को मदद पहुंचाने की बात कही जा रही है, उसको देखते हुए ये कमिश्नर और कलेक्टर सरकार के निशाने पर आ गए है । इन तीन कमिश्नरों में इंदौर और शहडोल कमिश्नर के नाम बताए जा रहे हैं जबकि जबलपुर कमिश्नर के संबंध में यह चौंकाने वाली जानकारी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को मिली है कि मतगणना वाले दिन सीएम के अतिविश्वस्त दो अधिकारियों का उन्हें भी मैसेज गया था कि संभाग में जिन सीटों पर भाजपा मामूली अंतर से पिछड़ रही है उन जिलों के कलेक्टरको सीएम हाउस की भावना से अवगत कराएं लेकिन कमिश्नर ने इस संदेश को आगे बढ़ाना तो दूर भोपाल के अफसरों को टका सा जवाब दे दिया था कि वे निर्वाचन की पारदर्शिता से कोई समझौता नहीं करेंगे। इसके विपरीत जिन सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की हार तीन-चार आंकड़े में हुई है वे कलेक्टर और वहां के कमिश्नर भी नपेंगे।
उज्जैन में भी होगा असर, महाकाल मंदिर जमीन पर संघ के दखल की फाइल खुलेगी
प्रशासनिक सर्जरी में इंदौर के कमिश्नर, कलेक्टर की तरह उज्जैन में भी बदलाव होना है।बहुत संभव है कि यहां दोनों अधिकारियों को एक साथ ना बदला जाए। उज्जैन कमिश्नर ओझा को बदला जा सकता है जबकि मनीष सिंह को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और महाकाल मंदिर विकास कार्यों को संपन्न कराने के लिए रोका जा सकता है। उज्जैन के धार्मिक महत्व और स्मार्ट सिटी के कार्यों को तेजी से अंजाम देने के लिए राज्य सरकार को जिस तरह के सख्तमिजाज आयएएस की जरूरत रहती है उनमें मनीष सिंह इसलिए भी नई सरकार की पसंद बन सकते हैं कि उनके पिता भी कांग्रेस शासन में अर्जुन सिंह के प्रिय अायएएस में रहे हैं।नगर निगम में सख्त मिजाज अधिकारी को लाया जा सकता है लेकिन पहली सूची में कलेक्टरों पर विचार होगा।
दिग्विजय सिंह के निशाने पर रहने वाला आरएसएस अब कमलनाथ सरकार के निशाने पर आना स्वाभाविक है। महाकाल मंदिर क्षेत्र की जमीन पर आरएसएस ने माधव सेवा न्यास द्वारा संचालित महाकालेश्वर भक्त निवास का निर्माण और पार्किंग क्षेत्र में दुकानों का निर्माण किया है उसके दस्तावेज भी कांग्रेस नेताओं ने जुटा लिए हैं। इन दुकानों के निर्माण से लेकर कब्जा देने तक में जिला प्रशासन से अधिक संघ की भूमिका क्यों रही, जब यह सारा क्षेत्र महाकाल मंदिर विस्तार योजना में शामिल था तो ये दुकानें कैसे बन गई, क्या हर दुकानदार से लाखों रुपए अलग से भी लिए गए ये साे बिंदुओं की जांच मनीष सिंह को करना पड़ सकती है।कांग्रेस के जो नेता कलेक्टर पर संघ समर्थक होने रा आरोप लगाते रहे थे उन्हें यह देखकर अच्छा लगेगा कि शासन के निर्देश पर जिला प्रशासन ही संघ के निर्माण कार्यों, जन अधिकार परिषद की कथित अनियमितता की जांच करेगा।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)